I think its very wannabe but since i wrote it i am posting it...
छुपाया तो मैने ही था कहीं
चीनी के डब्बे के पीछे
रात के सिरहाने के नीचे
एक पुरानी किताब के पन्नों के बीच में
या फिर बर्गद के पेड़ की जड़ों की ओट में
सपनों के सपनों में
तेरे कुछ कहने के इंतेज़ार में
छुपाया तो मैने ही था कहीं...
1 comment:
what a brilliant flow of words. like chopped waves that make one expectant of how the next one is going to shape up. likes!
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