एक डोर से बंधा है शायद
तेरे हाथों की लकीरों के साथ
तेरे माथे की शिकन...
तेरे होंटों की गर्मी में कहीं
गुम है मेरा आप...
मेरे कानों से होकर गुज़रे
तेरे कुछ कहे अनकहे शब्द
एक माला में पिरोती बैठीं हूँ
उसी डोर के साथ...बंधा है जिससे
धरोहर है एक तेरी मेरे पास
मेरे अन्दर कहीं वरना
गुम ही हो जाता मेरा आप
तेरे हाथों की लकीरों के साथ
तेरे माथे की शिकन...
तेरे होंटों की गर्मी में कहीं
गुम है मेरा आप...
मेरे कानों से होकर गुज़रे
तेरे कुछ कहे अनकहे शब्द
एक माला में पिरोती बैठीं हूँ
उसी डोर के साथ...बंधा है जिससे
धरोहर है एक तेरी मेरे पास
मेरे अन्दर कहीं वरना
गुम ही हो जाता मेरा आप
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