not really what i want to stay...somehow am not able to put it into words...a very feeble attempt...
कदम जब चले थे, राहें आवारा थी
सोचा था शायद कोई किस्सा मिल जाएगा कहीं...
और कोई नहीं तो मेरा ही सही
वो आगाज़ था मेरी तिश्नगी का...
उन दिनों
रातें गुमशुदा थीं और दिन खानाबदोश
मैं दीवानगी में चलती रही और देख ही ना पाई की
हर रास्ता उसी मोड़ पे आकर रुकता है
जहाँ से मैंने शुरुआत की थी...
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